उत्तर प्रदेश में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति साफ कर दी है. सपा 2024 के अपने विनिंग फॉर्मूले पर 2027 के चुनाव लड़ने की बिसात बिछा रही है. सपा ने पीडीए समीकरण के साथ-साथ कांग्रेस के संग मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. अखिलेश ने कहा कि 2027 के यूपी चुनाव में विपक्षी इंडिया गठबंधन जारी रहेगा. इसका मतलब कि यूपी में सपा और कांग्रेस के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेगी. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन सपा की सियासी मजबूरी है या फिर 2027 के चुनाव में सपा के लिए जरूरी है?
2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना सपा के लिए मुफीद रहा है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सपा 37 सीटें और कांग्रेस 6 सीटें जीतने में कामयाब रही. सपा ने अपने सियासी इतिहास में इतनी ज्यादा सीटें कभी नहीं जीत सकी. ऐसे में अखिलेश ने सूबे के सियासी समीकरण को देखते हुए 2027 में इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है.
कांग्रेस को लेकर सपा का बदला मन
हालांकि, अखिलेश का कांग्रेस के साथ गठबंधन का रुख बीते कुछ चुनावों में सपा के रुख और इंडिया गठबंधन के भीतर चली आ रही तकरार की स्थिति को देखते हुए काफी अहम है. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश उपचुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और सपा की दोस्ती में दरार पड़ गई थी. कांग्रेस ने सपा को हरियाणा और झारखंड में एक भी सीट नहीं दी थी तो महाराष्ट्र में तीन सीट ही सपा के लिए छोड़ी थी.
वहीं, उत्तर प्रदेश उपचुनाव में सपा ने कांग्रेस को उसके मनमाफिक सीटें नहीं दी थी, जिसके चलते कांग्रेस ने दूरी बना ली थी. दिल्ली विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का प्रचार किया था और समर्थन दिया था. इसके बाद से कांग्रेस और सपा के रिश्तों पर सवालिया निशान खड़े होने लगे थे, लेकिन अब अखिलेश यादव ने खुद साफ कर दिया है कि कांग्रेस के साथ मिलकर यूपी में 2027 का चुनाव लड़ेंगे.
सपा के बदले तेवर के मायने क्या हैं?
कांग्रेस को लेकर अखिलेश यादव के रुख में बदलाव के पीछे कई कारण हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस गठबंधन को अच्छी सफलता मिली थी. यूपी की 80 में सपा-कांग्रेस गठबंधन 43 सीटें जीतीं, जिसमें सपा की 37 और कांग्रेस की छह सीटें शामिल थीं. यह प्रदर्शन बीजेपी को मिलीं 33 सीटों की तुलना में काफी बेहतर था. इस प्रदर्शन ने सपा-कांग्रेस को गठबंधन की ताकत पर अहसास कराया. यह केमेस्ट्री बाद के उपचुनाव चुनावों में नहीं दिखी तो सपा का सियासी गणित गड़बड़ा गया. ऐसे में सपा के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना जरूरी बन गया है.
सपा जानती है कि कांग्रेस के बिना चुनाव लड़ना 2027 में महंगा पड़ सकता है. कांग्रेस के अलग लड़ने से वोटों का बिखराव का खतरा है. कांग्रेस और सपा का वोटबैंक एक ही है. कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने पर सपा का गेम बिगड़ सकता है. 2024 में सपा ने जो इतिहास रचा है, उसमें कांग्रेस का भी रोल काफी अहम रहा है. इसीलिए सपा कोई भी सियासी रिस्क लेने के मूड में नहीं है.
अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के बड़े दावे किए. पार्टी इसीलिए इंडिया गठबंधन के साथ आई, ताकि देश भर में पार्टी को विस्तारित करने में मदद मिलेगी. हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को किसी भी प्रदेश में उचित तरजीह मिलती नहीं दिखी है, लेकिन सपा यूपी के साथ किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है. इसीलिए कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना सपा के लिए काफी जरूरी है. नहीं तो अखिलेश यादव की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है.
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और राहुल गांधी यूपी में लगातार एक्टिव हैं. कांग्रेस का फोकस दलित, मुस्लिम और ओबीसी वोटों पर है. राहुल गांधी इन दिनों सामाजिक न्याय के एजेंडे पर राजनीति करते हुए नजर आ रहे हैं. इस तरह से कांग्रेस को इग्नोर करके सपा नहीं चल सकती है. अखिलेश को एहसास हुआ कि गठबंधन के बिना बीजेपी की संगठनात्मक ताकत और बटेंगे तो कटेंगे जैसे नारों का मुकाबला मुश्किल है.
कांग्रेस से दोस्ती सपा के लिए मजबूरी?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन न होना अरविंद केजरीवाल के लिए महंगा पड़ा है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर लड़ती तो फिर नतीजे दूसरे होते. दिल्ली के सियासी हश्र को देखते हुए अखिलेश यादव का कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना मजबूरी बन गया है. कांग्रेस ने दिल्ली में करीब एक दर्जन सीटों पर आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचाया था. इसी तरह से यूपी में भी कांग्रेस अगर अकेले उतरती है तो उसका नुकसान सपा को उठाना पड़ेगा. सपा इस बात को जानती है कि कांग्रेस के अलग चुनाव लड़ने से दलित और मुस्लिम वोटों में बिखराव हो सकता है, जिसके लिए गठबंधन करना मजबूरी है.
यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस से ज्यादा सपा के लिए अहम है. सपा को यूपी में सरकार बनानी है, जिसके चलते कांग्रेस से गठबंधन बनाए रखना भी सपा की मजबूरी है. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने जोर देकर कहा कि 2027 का चुनाव कांग्रेस के साथ लड़ेंगे. अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने जमे-जमाए पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को एक बार फिर जमीन पर उतरने की है, जिसे कांग्रेस के साथ मिलकर आसानी से कर सकते हैं.
अखिलेश यादव इस बात को बखूबी जानते हैं कि 2027 का विधानसभा चुनाव उनके लिए कितना अहम है. यूपी में 2017 से सपा सत्ता से बाहर है और तीसरी बार भी चुनाव जीतने में सफल नहीं रहती है तो काफी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. इसीलिए सपा कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रही है. लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल एक-दूसरे के पूरक हैं, जहां जो मजबूत है उसके सहारे के बगैर कांग्रेस नहीं चल सकती है. इसी तरह यूपी में कांग्रेस के बिना सपा नहीं चल सकती है.
लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से मुस्लिम और दलित वोट कांग्रेस को मिला है, उसके पीछे का कारण गठबंधन ही है. इस बात को सपा और कांग्रेस के लोग जानते हैं. इसी कारण अखिलेश यादव कह रहे हैं कि इंडिया गठबंधन बरकरार रहेगा और इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी समाजवादी उठाएंगे. इसके अलावा सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को राष्ट्रीय स्तर पर साबित करने की है. यूपी को जीते बिना सपा के लिए संभव नहीं है. ऐसे में साफ है कि अखिलेश यादव को इस समय कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की सबसे अधिक जरूरत है.